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गांधी जी के विचारों को आत्मसात करें – चेतन चौहान

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गांधी जी के विचारों को आत्मसात करें – चेतन चौहान

धौलपुर l राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि पर कार्यवाहक जिला कलक्टर चेतन चौहान की अध्यक्षता में गांधी अतीत ही नही भविष्य भी है विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में किया गया। उन्होंने कहा कि मानववादी मूल्यों के प्रतिष्ठापक महात्मा गाँधी आधुनिक भारत के जनक हैं, राष्ट्रपिता हैं। राष्ट्रीय आन्दोलनों के तीन दशकों तक हमें उनके प्रेरक मार्गदर्शन, सफल नेतृत्व एवं मानवतावादी जीवन-मूल्यों का पाथेय मिलता रहा है। उन्होंने अपनी कथनी और करनी से विश्व-मनीषा को दूर तक आंदोलित किया है। पूरे विश्व में सत्याग्रह गाँधी-चिन्तन का प्रथम आविष्कार माना गया है। अहिंसक आंदोलन उनका दिव्यास्त्रा था, जिसका आह्वान करके अनेकों बार उन्हें अविस्मरणीय सफलता मिली थी। उन्होंने अकेले ही सत्याग्रह के विकट पथ पर चलकर अपने अनुयायियों को सहिष्णुता और सहयोग से उनकी शक्तिमत्ता को जगाया था। ऐसा भी नहीं है कि ये दोनों शस्त्रा अहिंसा और सत्याग्रह स्वतत्राता-प्राप्ति के लिए मात्रा युद्ध-आयुध थे। वे उनकी नीति के प्रेरक आधार भी थे। भारत की आज़ादी के लिए युद्ध न कर युद्ध का इतना सरल तऱीका मानव-सभ्यता के इतिहास में इससे पूर्व अविदित था। इस दृष्टि से यह चिंतन-विचारधारा केवल भूत या वर्तमान के लिए ही उपयोगी नहीं है। यह विश्व-जीवन का शाश्वत मूल्य है। भविष्य के लिए भी मानव-कल्याण का मूलाधार है। गांधी दर्शन के संयोजक दुर्गादत्त शास्त्राी ने विचार गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए कहा कि गांधी जी को हम एक महापुरूष या नेता का चिन्तन ही नहीं मानते, यह एक सन्त और ऋषि का चिन्तन है – वे प्रकृति के महापुरुष थे, जिनकी सारी प्रज्ञा समाज के शान्तिपूर्ण परिवर्तन, समानता एवं न्याय-स्थापना के उपायों में प्रवृत्त थी।गाँधीजी का जीवन-दर्शन विशुद्ध धर्म-प्रेरित था, वह धर्म भी मानव-सेवा एवं मानव-कल्याण से अभिप्रेत था। गाँधीजी की आत्मकथा का नाम भी सत्य के प्रयोग है। उनकी सत्य-प्रयोगशाला में मानव के उत्थान के लिए सभी प्रयोग सफल रहे। गाँधीजी की धारणा थी कि विषमता ही हिंसा की जननी है। यदि हिंसा को रोकना हो और अहिंसा एवं शान्ति की स्थापना करनी हो तो सामाजिक-आर्थिक शोषण, अभाव, असमानता को जड़ से उखाड़ना होगा। युगानुकूल समाज-व्यवस्था को बदलना होगा, तभी परिवर्तन हो सकता है, जो मनुष्य को सुखी बना सके। यों कहा जाये कि गाँधी-चिन्तन इन शाश्वत समस्याओं का शाश्वत हल है। समाज के इसी बदलाव एवं सुसंस्कृत समाज के प्रतिष्ठापन के लिए गाँधी-चिन्तन ही मानव-मूल्यों की रक्षा के लिए शाश्वत महत्त्व रखता है। गांधी दर्शन के सह संयोजक धर्मेन्द्र शर्मा ने विचार गोष्ठी में कहा कि साबरमती के संत ने समाज-परिवर्तन के त्वरित मार्ग को अपनाकर चिर सुसंगठित समाज-रचना की गहरी नींव रखने के लिए और मानव-मूल्यों को बनाये रखने के लिए अपने को तपाया, गलाया और पूरे विश्व को आत्म-परिष्कार एवं हृदय-परिवर्तन के द्वारा एक नया चिन्तन एवं दृष्टिकोण दिया। मगर इन मूल्यों की स्थापना में उन्होंने आत्माहुति देकर अहिंसा-यज्ञ पूर्ण किया। आज इस त्याग, तपस्या और शान्तिप्रियता की ज़रूरत महसूस होती है। इस अवसर पर जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक अरविंद शर्मा, एडीपीसी समसा मुकेश गर्ग, एडवोकेट अतुल भार्गव, वीरी सिंह, अखिलेश, अशोक उपाध्याय ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन गोविन्द शर्मा द्वारा किया गया, कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ सम्पन्न हुआ

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