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ख्वाबों में टहलती है

बरसता पानी कभी रह-रह के कभी जम के बरसता पानी,कभी मन से कभी बेमन से बरसता पानी। है

ख्वाबों में टहलती है

रह-रह के बुलाती है,तेरी याद अकेले में।

इन पलकों की गलियों में ,
आवारा घूंमती है।
ख्वाबों में टहलती है,तेरी याद अकेले में।

पागल सी बनाती है,
दीवानी बनाती है,
मस्ताने गीत लिखती,तेरी याद अकेले में।

जब आती है चुपके से,
मुस्काती है धीरे से,
सीने से लिपटती है,तेरी याद अकेले में।

छूकर तुझे आती है,
खुशबू तेरी लाती है,
फूलों सी महकती है,तेरी याद अकेले में।

आकर इसे समझा जा,
या अपने साथ ले जा,
जी भर के रुलाती है,तेरी याद अकेले में।

अपने ही मन से आती,
अपने ही मन से जाती,
मनमानियां करती है,तेरी याद अकेले में।

रातों को जगाती है,
जीभर के सताती है,

फिर मुझको मनाती है,तेरी याद अकेले में।

गीतकार- अनिल भारद्वाज एडवोकेट, उच्च न्यायालय, ग्वालियर

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