महात्मा ज्योतिबा फूले
भारत के धार्मिक- सामाजिक नवोत्थान के पुरोधाओं, राजा राममोहन राय, महात्मा ज्योतिराव फुले, स्वामी दयानंद सरस्वती एवं महादेव गोविंद रानाडे में से सामाजिक क्रांति के जनक के रूप में केवल महात्मा ज्योतिबा फूले की गणना की जा सकती है। डा अम्बेडकर तो महात्मा फूले के व्यक्तित्व- कृतित्व से अत्यधिक प्रभावित थे। वे महात्मा फूले को अपने सामाजिक आंदोलन की प्ररेणा का स्त्रोत मानते थे। 28 अक्टूबर 1954 को पुरूंदर स्टेडियम, मुम्बई में भाषण देते हुए उन्होंने महात्मा बुद्ध तथा कबीर के बाद महात्मा फूले को अपना तीसरा गुरु माना है । प्रारम्भिक राजनीतिक आंदोलन में हमने ज्योतिबा के पथ का अनुसरण किया।वे कहते हैं, मेरा जीवन उनसे प्रभावित हुआ है, केवल उन्होंने ही मानवता का पाठ पढ़ाया।
महात्मा ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव गोविंदराव फुले) को 19वी. सदी का प्रमुख समाज सेवक माना जाता है. उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष किया. अछुतोद्वार, नारी-शिक्षा, विधवा – विवाह और किसानो के हित के लिए ज्योतिबा ने उल्लेखनीय कार्य किया है.ज्योति राव फूले का जन्म सतारा महाराष्ट्र में हुआ
महात्मा ज्योतिबा फुलेउनका परिवार बेहद गरीब था और जीवन-यापन के लिए बाग़-बगीचों में माली का काम करता था. ज्योतिबा जब मात्र एक वर्ष के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया था. ज्योतिबा का लालन – पालन सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया. 7 वर्ष की आयु में ज्योतिबा को गांव के स्कूल में पढ़ने भेजा ।जातिगत भेद-भाव के कारण उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ा. स्कूल छोड़ने के बाद भी उनमे पढ़ने की ललक बनी रही. सगुनाबाई ने बालक ज्योतिबा को घर में ही पढ़ने में मदद की. घरेलु कार्यो के बाद जो समय बचता उसमे वह किताबें पढ़ते थे. ज्योतिबा पास-पड़ोस के बुजुर्गो से विभिन्न विषयों में चर्चा करते थे. लोग उनकी सूक्ष्म और तर्क संगत बातों से बहुत प्रभावित होते थे. 19वी. सदी का प्रमुख समाज सेवक माना जाता है. उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष किया. अछुतोद्वार, नारी-शिक्षा, विधवा – विवाह और किसानो के हित के लिए ज्योतिबा ने उल्लेखनीय कार्य किया है.उन्होंने मराठी शिक्षा (1834-1838 ) तथा बाद में स्काटिश मिशन स्कूल में अंग्रेजी शिक्षा (1841-1847) प्राप्त की। युवक फूले के व्यक्तित्व निर्माण में ईसाइयत के उदारवाद, अमेरिकी लेखक टामस पेन के ग्रंथ ” राइटस आफ मैंने” तथा ” दी एज आफ रीजन” का प्रभाव पड़ा। छत्रपति शिवाजी, जोर्ज वाशिंगटन और मार्टिन लूथर किंग के जीवन चरित्रों के अध्ययन से युवक ज्योति स्वतन्त्रता, समानता और उदारवादी चिंतन के प्रबल पक्षधर बनें। सामाजिक क्रांतकारी और उनका सामाजिक चिंतन शून्य में उदय नहीं होता है। उसके ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ होते हैं। पुणे में 1848 में अपने ब्राह्मण मित्र सखाराम यशवंत परांजपे के विवाह में बाराती के रूप में शामिल होने पर एक रुढ़िवादी ब्राह्मण ने युवक ज्योति राव का घोर अपमान करते हुए कहा-” अरे शूद्र, ब्राह्मणों के साथ चलने की तेरी हिम्मत कैसे हुई? तूने तो जातीय व्यवस्था की सारी मर्यादाएं ही तोड़ दी। अपमानित युवक ज्योति राव ने यह अनुभव किया कि राजनीतिक दासता की तुलना में सामाजिक दासता अधिक अमानवीय और अपमानजनक होती है। इस प्रकार सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना उनके जीवन संघर्ष का प्राथमिक तथा अंतिम लक्ष्य बन गया।
महाराष्ट्र में सामाजिक सुधार के पिता समझे जाने वाले महात्मा फूले ने आजीवन सामाजिक सुधार हेतु कार्य किया । दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे
कार्य और सामाजिक सुधार :
- इनका सबसे पहला और महत्वपूर्ण कार्य महिलाओं की शिक्षा के लिये था; और इनकी पहली अनुयायी खुद इनकी पत्नी थी जो हमेशा अपने सपनों को बाँटती थी तथा पूरे जीवन भर उनका साथ दिया।
- अपनी कल्पनाओं और आकांक्षाओं के एक न्याय संगत और एक समान समाज बनाने के लिये 1848 में ज्योतिबा ने लड़कियों के लिये एक स्कूल खोला; ये देश का पहला लड़कियों के लिये विद्यालय था। उनकी पत्नी सावित्रीबाई वहाँ अध्यापान का कार्य करती थी। लेकिन लड़कियों को शिक्षित करने के प्रयास में, एक उच्च असोचनीय घटना हुई उस समय, ज्योतिबा को अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर किया गया। हालाँकि इस तरह के दबाव और धमकियों के बावजूद भी वो अपने लक्ष्य से नहीं भटके और सामाजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ते रहे और इसके खिलाफ लोगों में चेतना फैलाते रहे।
- 1851 में इन्होंने बड़ा और बेहतर स्कूल शुरु किया जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। वहाँ जाति, धर्म तथा पंथ के आधार पर कोई भेदभाव नहीं था और उसके दरवाजे सभी के लिये खुले थे।
- ज्योतिबा फुले बाल विवाह के खिलाफ थे साथ ही विधवा विवाह के समर्थक भी थे; वे ऐसी महिलाओं से बहुत सहानुभूति रखते थे जो शोषण का शिकार हुई हो या किसी कारणवश परेशान हो इसलिये उन्होंने ऐसी महिलाओं के लिये अपने घर के दरवाजे खुले रखे थे जहाँ उनकी देखभाल हो सके।
मृत्यु :
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था | यह बच्चा बड़ा होकर एक डाक्टर बना और इसने भी अपने माता पिता के समाज सेवा के कार्यों को आगे बढ़ाया | मानवता की भलाई के लिए किये गए ज्योतिबा के इन निश्वार्थ कार्यों के कारण 1988 में उस समय के एक और महान समाज सुधारक “राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर” ने उन्हें “महात्मा” की उपाधी प्रदान की | 28 नवम्बर 1890 को ज्योतिबा फुले ने देह त्याग दिया और एक महान समाजसेवी इस दुनिया से विदा हो गया|लेकिन आज भी लोग उनको जयंती के रूप में मानते आ रहे ।
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