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भारत के ऐसे अदभूत, चमत्कारी शिवलिंग जिनकी कथा है अजव गजब

शिव रात्रि विशेष – बैसे तो हिन्दू धर्म मे हर दिन भगवान के लिए बिशेष रखा गया है जैसे की सोमवार को शिव जी, मगलवार को हनुमान जी का । लेकिन सोमवार दिन के अलावा कुछ विशेष दिन भी है जिसमे भगवान शिव की विशेष पूजा होती हो जैसे की महाशिवरात्री, और चतुर्दश इसके साथ ही पूरे श्रावण माह में उनकी पूजा की जाती है। शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। अगर आप भी भगवान शिव के भक्त है तो आज का दिन बेहतर साबित होने वाला है। आज महाशिव रात्री का पवित्रम दिन है. दुनिया में महादेव के करोड़ों मंदिर और उनके शिवलिंग स्थापित है, जहां भक्त जाकर उनके चमत्कारो को भी कोई समझ नहीं पाया है।आओ जानते हैं ऐसे चमत्कारिक शिवलिंग जहां के दर्शन आपको एक बार जरूर करना चाहिए।

1.अपने आप होता है जलाभिषेक : झारखंड के रामगढ़ में स्थित इस शिवमंदिर को प्राचीन मंदिर टूटी झरना के नाम से जाना जाता है। मंदिर में मौजूद शिवलिंग पर अपने-आप 24 घंटे जलाभिषेक होता रहता है। खास बात तो यह है कि यह जलाभिषेक कोई और नहीं बल्कि खुद मां गंगा अपनी हथेलियों से करती हैं। दरअसल शिवलिंग के ऊपर मां गंगा की एक प्रतिमा स्थापित है जिनके नाभि से अपने-आप पानी की धारा उनकी हथेलियों से होता हुआ शिवलिंग पर गिरता है। यह आज भी रहस्य बना हुआ है कि आखिर इस पानी का स्त्रोत कहां है? माना जाता है कि इस मंदिर की जानकारी पुराणों में भी मिलती है। प्राचीन मंदिर टूटी झरना को लेकर एक किंवदंति प्रचलित है कि बहुत साल पहले यहां रेलवे लाइन बिछाने के दौरान इस मंदिर के बारे में लोगों को जानकारी मिली थी। पानी के लिए यहां खुदाई के दौरान जमीन के अंदर शिवलिंग, और मां गंगा की एक प्रतिमा भी मिली।

2. बिजली महादेव : -बिजली महादेव हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है। यहां पर पार्वती और व्यास नदी का संगम स्थान है।मान्यता है कि यहां की विशालकाय घाटी सांप के रूप में है, जिसका वध महादेव के द्वारा किया गया था। मान्यता के अनुसार भगवान शिव की अज्ञा लेकर ही हर 12 साल पर भगवान इंद्र बिजली गिराते हैं। बिजली गिरने के कारण शिवलिंग खंडित हो जाता है, उसके बाद यहां के पुजारियों द्वारा खंडित शिवलिंग को मक्खन से जोड़ देते हैं और यह पुनः अपने ठोस आकार में परिवर्तित हो जाता है। इसलिये इसे बिजली महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

3. रंग बदलता शिवलिंग :- राजस्थान अपने इतिहास के साथ-साथ चमत्कार और रहस्यों के भी प्रसिद्ध हैं। वैसे तो प्रदेश में देवी-देवताओं के सैकड़ों विख्यात और चमत्कारी मंदिर हैं, लेकिन एक ऐसा शिव मंदिर हैं, जहां मंदिर में विराजमान शिवलिंग का दिन मे तीन बार रंग बदलता है। यह भी आश्चर्य है कि इस शिवलिंग का कोई छोर नहीं है। आस्था का अगाध केंद्र माना जाने वाला ये मंदिर धौलपुर से 5 किलोमीटर दूर चंबल नदी के किनारे बीहड़ों में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर सुबह के समय शिवलिंग की आभा लाल रंग की होती है, जो दोपहर तक बदलकर केसरिया दिखने लगती है। और फिर शाम को इसका रंग धीरे-धीरे सांवला होने लगता है।अचलेश्वर महादेव का अपनी विशेष महत्व है। यहां भोलेनाथ की शरण में मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लाखों की तादाद में भक्त दर्शन करने आते हैं। हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेले का भी आयोजन होता है, श्रद्धालुओं की मानें तो अचलेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है।

4. भोजेश्वर महादेव मंदिर : मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर भोजपुर (रायसेन जिला) में भोजपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यहां का शिवलिंग अद्भुत और विशाल है। यह भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई-1055 ई) द्वारा किया गया था। चिकने लाल बलुआ पाषाण के बने इस शिवलिंग को एक ही पत्थर से बनाया गया है और यह विश्व का सबसे बड़ा प्राचीन शिवलिंग माना जाता है। कहते हैं कि यहां पहले साधुओं के एक समूह ने गहन तपस्या की थी।

5. लक्षलिंग महादेव मंदिर– छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर पर खरौद नामक शहर में स्थित लक्षलिंग महादेव मंदिर है .इस मंदिर के बारे मे बताया जाता है कि इस शिवलिंग में करीब एक लाख छेद हैं। इनमें से एक छेद पाताल तक गया है और एक छेद ऐसा है जो हमेशा जल से भरा रहता है। इस शिवलिंग पर जो भी जल अर्पित किया जाता है वह सीधे पाताल में चला जाता है। इसमें जितना भी पानी डालो वह कभी भी बाहर नहीं ढुलता है। लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू भी कहा जाता है।

6-मृतेश्वर शिवलिंग : गुजरात के गोधरा में स्थित मृतेश्वर शिवलिंग का आकार बढ़ता ही जा रहा है। मान्यता के अनुसार जिस दिन शिवलिंग का आकार 8.5 फुट का हो जाएगा, उस दिन यह मंदिर की छत से टकरा जाएगा और तब प्रलय की शुरुआत होगी। कहते हैं कि शिवलिंग का आकार 1 वर्ष में एक चावल के दाने के बराबर बढ़ता है। शिवलिंग को लेकर कहा जाता है कि जिस दिन यह मृदेश्वर महादेव का शिवलिंग मंदिर के छत को छू लेगी, उस दिन प्रलय आ जाएगा और दुनिया का अंत हो जाएगा। मंदिर से जुडे़ लोगों का कहना है कि अभी ऐसा होने में लाखों वर्ष लग सकते हैं। मंदिर के शिवलिंग से प्राकृतिक रूप से जल की धारा निकलती रहती हैं। जओ गर्मी और सूखे में भी नहीं रुकती और लगातार बहती रहती है।

7 मातंगेश्वर शिवलिंग : मध्यप्रदेश के खजुराहो में शिव मंदिर का शिवलिंग हर साल एक तिल बढ़ रहा है। मंदिर में स्थित शिवलिंग 9 फीट जमीन के अंदर और उतना ही बाहर भी है। यही नहीं इसके अलावा मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है। मंदिर की विशेषता यह है की यह शिवलिंग जितना ऊपर है की तरफ बढ़ता है उतना ही नीचे की तरफ भी बढ़ता है। शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है.इस मंदिर का निर्माण चंदेल शासको के काल में करवाया था।

8 स्तंभेश्वर महादेव मंदिर : गुजरात में वडोदरा से 85 किमी दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव का महादेव मंदिर दिन में देखते देखते गायब हो जाता है।फिर अचानक ही दोबारा दिखने लगता है। मंदिर की इसी खूबी के कारण दुनियाभर से शिब भक्त इस घटना को अपनी आंखों से देखने के लिए दौड़े चले आती है .इस मंदिर का निर्माण अपने तपोबल से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने किया था। इस मंदिर का गायव हो ना ओर पुंन आना कोई चमत्कार नहीं बल्कि एक प्राकृतिक घटना का परिणाम है। दरअसल दिन में कम से कम दो बार समुद्र का जल स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरी तरह समुद्र में डूब जाता है। फिर कुछ ही पलो में समुद्र का जल स्तर घट जाता है और मंदिर फिर से नजर आने लगता है। यह घटना हर रोज सुबह और शाम के समय घटती है।

9. निष्कलंक महादेव : यह मंदिर गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है। प्रतिदिन अरब सागर की लहरें यहां के शिवलिंग का जलाभिषेक करती है। ज्वारभाटा जब शांत हो जाता है तब लोग पैदल चलकर इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। ज्वार के समय सिर्फ मंदिर का ध्वज ही नजर आता है। ऐसा कहते हैं कि यह मंदिर महाभारतकालीन है और जब युद्ध के बाद पांडवों को अपने ही कुल के लोगों को मारने का पछतावा था और वे इस पाप से छुटकारा पाना चाहते थे तब वे श्रीकृष्ण के पास गए। श्रीकृष्ण द्वारिका में रहते थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें एक काली गाय और एक काला झंडा दिया और कहा कि तुम यह झंडा लेकर पृथ्वी का भ्रमण करो जब झंडा सफेद हो जाए तो समझना की पाप से छुटकारा मिल गया। जहां यह चमत्कार हो वहीं पर शिव की तपस्या करना। कई दिनों तक चलने के बाद पांडव ध्वजा लेकर जब कोलियाक गांव के निकट समुद्र किनारे पहुंचे तो वहां ध्वजा सफेद हो गई। पांडवों ने समुद्र में स्नान किया और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। वही पांचों शिवलिंग आज तक यहां विद्यमान हैं। पांडवों ने यहां अपने पापों से मुक्ति पाई थी इसीलिए इसे निष्‍कलंक महादेव मंदिर कहते हैं।

10. तिलभांडेश्वर मंदिर : काशी केकेदार खंड में स्थित तिलभांडेश्वर के नाम से प्रसिद्ध मंदिर का स्वयंभू शिवलिंग भी साल एक तिल के बराबर बढ़ता है। छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में गरियाबंद के घने जंगलों में स्थित भूतेश्वर महादेव का शिवलिंग भी हर वर्ष बढ़ता है। इसी तरह मध्यप्रदेश के देवास के पास बिलावली में स्थित शिवमंदिर का शिवलिंग भी प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ता है।

11 लक्षलिंग महादेव मंदिर– प्राचीन गंगा मंदिर का भी रहस्‍य आज तक कोई समझ नहीं पाया है। मंदिर में स्‍थापित शिवलिंग पर प्र‍त्‍येक वर्ष एक अंकुर उभरता है। जिसके फूटने पर भगवान शिव और अन्‍य देवी-देवताओं की आकृतियां निकलती हैं। इस विषय पर काफी रिसर्च वर्क भी हुआ लेकिन शिवलिंग पर अंकुर का रहस्‍य आज तक कोई समझ नहीं पाया है। यही नहीं मंदिर की सीढ़‍ियों पर अगर कोई पत्‍थर फेंका जाए तो जल के अंदर पत्‍थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है।

12-पौड़ीवाला शिव मंदिर– ये मंदिर हिमाचल प्रदेश से 70 कि.मी से दूर सिरमौर नामक जिले में स्थित है. जिसका नाम पौड़ीवाला शिव मंदिर है.इस मंदिर के शिवलिंग को काफी चमत्कारिक गुणों वाला माना गया है। क्योंकि इसकी स्थापना स्वयं दशानन रावण ने की थी। मान्यता के अनुसार, रावण ने अमर होने के लिए एक बार भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, तब भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि, अगर रावण 5 सीढियों का निर्माण कर देता है तो वो अमर हो जाएगा लेकिन आंख लगने के कारण वह चार ही पौड़ी बना पाया। जिससे स्वर्ग जाने का सपना पूरा नहीं हुआ और शरीर में अमृत रखे हुए भी उसे अपनी देह को त्यागना पता.इसमें पहली सीढी हरीद्वार मे वनाई जिसेहर की पौड़ी कहा जाता है , दूसरी पौड़ीवाला शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश मे तीसरी पौड़ी चूड़ेश्वर महादेव और चौथी पौड़ी – किन्नर कैलाश पर्वत मे बनाई थी।

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