आओ दीप जलाएं
जिसके घर की दिवाली से रूठा है उजियारा,
उस शहीद के राष्ट्र प्रेम पर आओ दीप जलाएं।
उसे दशहरा ढूंढ रहा था मन में पीर छुपा के,
चला गया चुपचाप चित्र पर श्रद्धा सुमन चढ़ा के,
मावस की पलकों से भींगे सब फुलझड़ी पटाखे,
कहां खो गया घर का दीपक घर के दीप बुझा के।
जिसके प्राणों की आहुति से जगमग है जग सारा,
उस शहीद के राष्ट्र धर्म पर आओ दीप जलाएं।
जिसके घर की दिवाली से रूठा है उजियारा,
उस शहीद के राष्ट्र प्रेम पर आओ दीप जलाएं।
बूढ़ा पीपल फफक उठा,तुलसी ने सुध बुध खोई,
द्वार, झरोखे ,आंगन के संग धूप-छांव भी रोई।
मां भारती तिरंगे में जब उसके शव को लाई,
छाती सी फट गई गांव की सुबह रात भर रोई।
जिसकी बलिदानी खुशबू से महके वतन हमारा,
उस शहीद के राष्ट्र कर्म पर आओ दीप जलाएं।
जिसके घर की दिवाली से रूठा है उजियारा,
उस शहीद के राष्ट्र प्रेम पर आओ दीप जलाएं।
गीतकार-अनिल भारद्वाज एडवोकेट,उच्च न्यायालय ग्वालियर
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