धर्मरक्षक व हिन्दू स्वाभिमान व सम्मान के प्रतीक महान महाराणा प्रताप को पुण्यतिथि पर नमन है
आज पुण्यतिथि है धर्म की रक्षा के लिए हर सुख का त्याग करने वाले उस अमर बलिदानी का जिनका नाम सुन कर आज भी भुजाएं खुद से ही फड़क उठती हैं .. पुण्यतिथि है राजस्थान में आज ही जन्मे उस गौरव महाराणा प्रताप का जो बन गये हिंदुत्व के वो प्रतीक जो शिक्षा देते रहेंगे अनंत काल तक धर्म की रक्षा की.
भले ही हालात कितने भी विषम क्यों न हो और दुश्मन कितना भी मजबूत क्यों न हो . महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। हिन्दू परंपरा से वीर व महान महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
उनके पिता महाराणा उदयसिंह और माता जीवत कंवर या जयवंत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी ‘कीका’ नाम लेकर पुकारा करते थे। राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदयसिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है।
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महाराणा प्रताप को राजपूत वीरता, शिष्टता और दृढ़ता की एक मिशाल माना जाता है। वह मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले अकेले योद्धा थे। उन्होंने स्वयं के लाभ के लिए भी कभी किसी के आगे हार नहीं मानी थी। वह अपने लोगों से बहुत प्यार करते थे और उनके साथ आजादी की लड़ाई में भी शामिल हुए थे।
मेवाड़ की शौर्य-भूमि धन्य है जहां वीरता और दृढ प्रण वाले प्रताप का जन्म हुआ। जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अजर-अमर कर दिया। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया। सन् 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में करीब बीस हजार हिन्दुओं को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार के अस्सी हजार की सेना का सामना किया।
महाराणा प्रताप के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम ‘चेतक’ था। इस युद्ध में अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। यह युद्ध केवल एक दिन चला परंतु इसमें सत्रह हजार लोग मारे गए।
प्रताप को अपने भगोड़े जीवन में बहुत कठिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा किन्तु वह स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे। भामाशाह जैसे भरोसेमंद पुरुषों की मदद से उन्होंने दोबारा युद्ध लड़ा और प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया।
उनका बलिदान अनुयायियों के बीच एक वीर योद्धा की तरह हुआ . हल्दीघाटी का युद्ध अय्याश क्रूर हत्यारा अकबर और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था. हल्दीघाटी के युद्ध में न तो दरिंदा अकबर जीत सका और न ही राणा हारे.
मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी. मुगलों की असली ताकत हिन्दुओ में से टूट कर जा मिले गद्दार थे वरना अकबर जैसे अय्याश महाप्रतापी प्रताप के आगे कुछ पल भी न टिक पाते ..
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था. उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था. आपको बता दें हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक.
इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे. जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया था. हिन्दुओ को वीरता, स्वाभिमान, शौर्य की शिक्षा दे कर आज ही के दिन अर्थात 19 जनवरी 1597 को वीर शिरोमणि राणा प्रताप जी अमरता को प्राप्त हो गए थे..
आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है. आज वीरता और शौर्य के उस अमर योद्धा महाराणा प्रताप को उनके पुण्यतिथि पर बारम्बार नमन और वंदन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है .. वीर शिरोमणि धर्मयोद्धा महाराणा प्रताप अमर रहें .
महाराणा प्रताप : शौर्य और वीरता के बारे में 10 बातें जो सबको पता होना चाहिए
1. मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने वाले वीर सम्राट, साहसी, राष्ट्रभक्त शूरवीर, राष्ट्रगौरव, पराक्रमी, महाराणा प्रताप की जयंती (Maharana Pratap History) प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर 9 मई, 1540 में हुआ था।
2. उनको को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। मेवाड़ की शौर्य-भूमि धन्य है जहां वीरता और दृढ प्रण वाले प्रताप का जन्म हुआ। जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अजर-अमर कर दिया। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया।
3. महाराणा प्रताप राजनीतिज्ञ, कुटनीतिज्ञ, मानसिक व शारीरिक क्षमता में अद्वितीय थे। उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था तथा वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे।
4. सन् 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में करीब बीस हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के अस्सी हजार की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। यह युद्ध केवल एक दिन चला परंतु इसमें सत्रह हजार लोग मारे गए।
5. महाराणा प्रताप के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम ‘चेतक’ था। इस युद्ध में अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। जिसने अंतिम समय में जब महाराणा प्रताप के पीछे मुगल सेना पड़ी थी तब अपनी पीठ पर लांघकर 26 फीट ऊंची छलांग लगाकर नाला पार कराया और वीरगति को प्राप्त हुआ। जबकि इस नाले को मुगल घुड़सवार पार नहीं कर सकें।
6. पिता उदयसिंह द्वारा अपनी मृत्यु से पहले ही जब अपनी सबसे छोटी पत्नी के पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहा तब मेवाड़ की जनता ने असहमत होकर इसका विरोध किया तथा तब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ छोड़ने का निर्णय किया था किंतु जनता के निवेदन पर वे रुक गए और 1 मार्च, 1573 को उन्होंने सिंहासन की कमान संभाली। उस समय दिल्ली में मुगल शासक अकबर का राज था और उसकी अधीनता कई हिन्दू राजा स्वीकार करने के लिए संधि-समझौता कर रहे थे, तो कई मुगल औरतों से अपने वैवाहिक संबंध स्थापित करने में लगे थे। लेकिन इनसे अलग महाराणा प्रताप को अकबर की दासता मंजूर नहीं थी। इससे आहत होकर अकबर ने मानसिंह और जहांगीर के अध्यक्षता में मेवाड़ आक्रमण को लेकर अपनी सेना भेजी।
7. 18 जून, 1576 को आमेर के राजा मानसिंह और आसफ खां के नेतृत्व में मुगल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर की जीत हो सकी और न ही महाराणा प्रताप की हार हो सकी। मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने भी सभी प्रयास किए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया।
8. हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध के बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। एक दिन जब उन्होंने अपने बेटे अमरसिंह की भूख शांत करने के लिए घास की रोटी बनाई तो उसे भी जंगली बिल्ली ले भागी। इससे विचलित होकर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान डगमगाने लगा। उनके हौसले कमजोर पड़ने लगे। ऐसी अफवाह फैल गई कि महाराणा प्रताप की विवशता ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। तभी बीकानेर के कवि पृथ्वीराज राठौड़ ने महाराणा को पत्र लिखकर उनके सुप्त स्वाभिमान को पुन: जगा दिया। फिर महाराणा प्रताप (Bharat Ka Veer Putra Maharana Pratap) को मरते दम तक अकबर अधीन करने में असफल ही रहा।
9. महाराणा प्रताप की मृत्यु अपनी राजधानी चावंड में धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण इलाज के बाद 57 वर्ष की उम्र में 19 जनवरी, 1597 (Maharana Pratap Death Anniversary) को हो गई। महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी आंसू छलक आए थे।
10. एक बार अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जब भारत के दौरे पर आ रहे थे, तो उन्होंने अपनी माता से पूछा… ‘मैं आपके लिए भारत से क्या लेकर आऊं, तो उनकी मां ने कहा था भारत से तुम हल्दीघाटी की मिट्टी लेकर आना जिसे हजारों वीरों ने अपने रक्त से सींचा है।’ महाराणा प्रताप ने धन-दौलत सबकुछ छोड़ दिया लेकिन कभी अपना सिर नहीं झुकाया और हिन्द के सभी राजकुमारों में अकेले ही उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा।’ महाराणा प्रताप की वीरता और सच्चे राष्ट्रनायक के बलिदान पर आज उनकी पुण्यतिथि (Maharana Pratap Punyatithi 2023) पर हम सभी कृतज्ञ है।
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