धूमधाम से निकली कलश यात्रा,सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का हुआ शुभारंभ
धौलपुर । शहर के जीटी रोड स्थित गली नंबर 4 मोहन कॉलोनी गौशाला में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ किया जा रहा है।जिसमें सात दिवसीय भागवत कथा ज्ञान यज्ञ की शुरुआत विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद कलश यात्रा के साथ की गई। श्रीमद् भागवत कथा से पूर्व कलश यात्रा चोपड़ा मंदिर से शुरू होकर सब्जी मंडी ,जीटी रोड होते हुए गौशाला से होते हुए कथा स्थल पहुची ,इस दौरान 101महिलाएं और कन्याएं पीला वस्त्र धारण कर सिर पर कलश उठाए कलश यात्रा में शामिल हुईं। कलश यात्रा में बैंड बाजा ,घोड़ी बग्गी एवं धर्मध्वजा युक्त झांकी निकाली गई।
बिलोनिया परिवार की ओर से आयोजित हो रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन ने बताया कि भागवत कथा का आयोजन करने तथा सुनने से अनेक लाभ है। इसे आयोजित कराने तथा सुनने वाले व्यक्तियों-परिवारों के पूर्वजों को शांति और मुक्ति मिलती है। इसे सुनने से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति करते हुए आप सांसारिक दुखों से निकल पाते हैं।श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं। दूसरे दिन योगेश कृष्ण महाराज ने अमर कथा सुनाते हुए बताया कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, कि आप अजर-अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है और आपके कंठ में पड़ी यह नरमुण्ड माला तथा आपके अमर होने का रहस्य क्या है? शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। देवी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। भगवान शिव ने माता पार्वती से एकांत और गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कि अमर कथा कोई अन्य जीव ना सुन पाए क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता है वह अमर हो जाता। भगवान भोलेनाथ ने जीवन के गूढ़ रहस्य की अमर कथा माता पार्वती को सुनाना शुरू किया, जिसमें उन्होंने जगत का सबसे बड़ा रहस्य, सृष्टि का आदि और अंत सब कुछ बताया। पर कथा सुनते-सुनते माता पार्वती को निंद्रा आ गई और वह सो गईं, इस बात का महादेव को आभास नहीं हुआ, वे अमर होने की कथा सुनाते रहे। लेकिन गुफा में पहले से ही मौजूद दो सफेद कबूतर शिवजी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में हूँ हूँ कर रहे थे, शिवजी को लग रहा था कि देवी पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रही हैं।
कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वतीजी की ओर गया जो सो रही थी। शिव जी ने सोचा कि अगर पार्वती सो रही है, तब इस कथा को सुन कौन रहा था। तभी उन्हें दोनों कबूतर दिखाई दिए, शिवजी उनका वध करना चाहते थे क्योंकि उनके अमर हो जाने पर सृष्टि का संतुलन बिगड़ सकता था। इस पर कबूतरों ने विनती की, हे भोलेनाथ जीवन और मृत्यु के दाता तो आप ही हैं। यदि आप हमें मार देंगे तो आपकी अमर कथा का महत्व नहीं रह जाएगा। आपकी कथा असत्य सिद्ध हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को प्राणदान दे दिया और उन्हें आर्शीवाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे।

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